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Sunday, January 19, 2020

Journey is Important Part of life.

  घूमने का फायदा

"सैर कर दुनीया की गालिब,

जिन्दगानी फिर कहा,

जिन्दगानी गर रही तो,

नौजवानी फिर कहा!"

घुमक्कड़ी पन का एक अपना मिजाज होता है इसे पैदा नहीं किया जा सकता या हम चाह कर भी घुमक्कड़ी पन लाना चाहे तो वह उत्पन्न नहीं होता।

हर व्यक्तित्व चाहता है कि  देश-दुनिया को घूमे ,शोखिया घूमे किंतु उसकी आर्थिक स्थिति बाधा बन जाती है किंतु इसी के विपरीत हम कहें कि घुमक्कड़ इंसान को कभी आर्थिक  समस्या नहीं होती क्योंकि उसका स्वभाव है घूमने का इस तरह से अपनी स्थिति को परिस्थिति के साथ समावेश कर लेता है।

उसे लगता ही नहीं कि उसकी आर्थिक स्थिति उसके घूमने में बाधक है ।

वह आसानी से कहीं भी जाकर घूम फिर कर आ सकता है

बहुत से दार्शनिक ,वैज्ञानिक ने अपने घुमक्कड़ी पन की वजह से ही नयी चीजों को खोजा और दुनिया के सामने लाया ।

बुद्ध  सुकरात ,अरस्तु ,वास्कोडिगामा ऐसे उदाहरण हैं जो सर्वविदित है , इन महान  दार्शनिकों ने जो उपलब्धि पाए जो नाम कमाया,  इतिहास में अंकित हुए व उनके घुमक्कड़ी पन की वजह से था ।

घुमक्कड़ी पन का नतीजा रहा, यह देश दुनिया घूमते रहे और इनको जो ज्ञान की प्राप्ति हुई वहां के संस्कृति से, वहां के पर्यावरण से ,वहां के रहन-सहन से ,वहां की खानपान को जानकर इन्होंने एक ज्ञान का भंडार प्राप्त कर लिया

और यह सभी महान दार्शनिक दुनिया में महान कार्य के लिए जाने ,जाने लगे।
घुमक्कड़ व्यक्तित्व का एक बहुत ही बड़ा कारण है उसकी जिज्ञासा है , दुनिया को देखने का अलग तरह का नजरिया।

वह अपने आप में मस्त होता है, उसे दुनिया क्या कहेगी उसका कोई फर्क नहीं पड़ता है, बस उसकी जिज्ञासा उसे चारों तरफ धुमाती रहती है और लोगों उसे घुमक्कड़ी नाम से पुकारने  लगते हैं।

घुमक्कड़ी पन का एक उदाहरण आप कबीर में भी देख सकते हैं - "मसि कागद छुवो नहीं , कलम गही नहिं हाथ "

कबीर के पास जो ज्ञान था वह घूम कर कर मिला था ना कि उन्होंने किताब को पढ़कर प्राप्त किया था।

कबीर की वाणी का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है

इसके तीन भाग हैं -  साखी  सबद, और रमैनी। यह पंजाबी, राजस्थानी,अवधि, पूर्वी , ब्रज भाषा आदि कई भाषाओं का खिचड़ी है। 

इन सभी भाषाओं का ज्ञान यह दर्शाता है कि कबीर भी घुमक्कड़ी  स्वभाव के थे और इन्होंने भाषा ज्ञान घूम कर ही प्राप्त किया।

इस दुनिया में जितने आविष्कार नई खोज हुई है ,उसके पीछे लोगों का घूमना ही रहा है , अलग  अलग जगह के जीव -जंतु वनस्पतियों  का अध्ययन कर बहुत सी मेडिसिन बनाई गई, जो आज हमारे लिए वरदान साबित हो रही है ; हमारे घूमने-फिरने की वजह से ही हम अलग -अलग देशों के खान - पीन , व्यवहार आदि को जानते है ,जो हमारे जीवन में इतना कारगर रही कि हमें क्या खाना चाहिए कैसे व्यवहार करना चाहिए, किन चीजों की कमी से हम बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं उन सभी का उपचार वनस्पतियों में अलग-अलग देशों की खोजों को समावेशित कर उसका लाभ पा रहे हैं।

आज के समय मैं बिना घूमे हम सभी टेलीविजन से, इंटरनेट से,   यूट्यूब एवं गूगल से सर्च कर जानकारी तो प्राप्त कर लेते हैं किंतु एक कमी रह जाती है कि जिस परिवेश को हम टेलीविजन पर देखते हैं उसका एहसास नहीं होता।


जिस परिवेश को हम टीवी पर देखकर एहसास नहीं कर पाते अगर उसी स्थान पर हम सभी रहे और उस परिवेश को जिए तो वह एहसास जो हमारी जिंदगी में चलता है वह अलौकिक होगा यही एहसास हम आज की दुनिया में नेट / इंटरनेट और दूरदर्शन के माध्यम से नहीं पा सकते अर्थात कह सकते हैं कि बिना घूमे हम उस अलौकिक एहसास को प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए हमें हमेशा उस परिवेश में जाकर घूमना चाहिए जिससे हमारा आत्मज्ञान वहां की जानकारी वहां का सर्वाइवल कैसा है, कैसे जी सकते हैं यह जान सकते हैं यही एहसास हमें भविष्य में जीने के लिए समृद्धि देगा। 

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