Buddhist temple in Ghurahupur, Chandauli, Uttar Pradesh
इस पहाड़ी पर एक बार आज ही घूमे ,वाराणसी से 60 से 65 किलोमीटर दूरी पर स्थित है |
महात्मा बुद्ध जब बौद्ध गया से सारनाथ वाराणसी के लिए चले थे, तो इसी स्थान धुरहूपुर जो आज रॉक पेंटिंग के लिए मशहूर है, उसी स्थान पर महात्मा बुद्ध ने विश्राम किया था तभी से यह स्थान पूजनीय और बंदनी हो गया |
आज भी श्रद्धालु इस भूमि पर उपस्थित होकर भगवान महात्मा बुद्ध की प्रतिमा के सामने पूजन अर्चन करते हैं , प्राकृतिक दृश्य से यह स्थान अति सुंदर पहाड़ों पर है यहां घूमने में जो आनंद मिलता है वह कहीं नहीं है,
विंध्य पर्वत मालाओं पर रॉक पेंटिंग इतिहास को दृष्टिगत रखते हुए अपनी पहचान बनाए हुई है कहते हैं कि इस घनघोर पर्वत में वन्यजीवों के अतिरिक्त आदिमानव भी रहा करते थे इनकी उपस्थिति उन क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों में पाए गए प्रागैतिहासिक काल की राक पेंटिंग से स्पष्ट होता है|
इसे आमजन भित्ति चित्र के रूप में जानते हैं, इस वन में शिलाजीत जैसे औषधियां पाई जाती हैं , भृंगराज, सफेद मूसली, सतावर, गुड़मार, हरसिंगार,कालमेघ, सर्पगंधा, बहुमूल्य दुर्लभ औषधियां विद्यमान है |
काशी वन्य जीवन प्रभाग के अंतर्गत यह वन भूमि अपनी पौराणिक ऐतिहासिक व पुरातत्विक प्रासंगिकताओं को सजाये हुए हैं |
यहां पर जब भी आप घूमने का विचार करें तो अकेला ना जाए ग्रुप में जाएं वैसे तो आमजन के लिए कोई दिक्कत नहीं है लेकिन थोड़ा नक्सल प्रभावित होने के कारण अपनी सुरक्षा स्वयं करें|