Amazon Prime

Thursday, March 25, 2021

काशी में शमशान की राख से होली का त्यौहार की शुरुआत ( Holi Festival in kashi)

 Holi Festival in kashi

काशी में शमशान की राख से होली  के त्यौहार की शुरुआत


उत्तर प्रदेश के वाराणसी में श्मशान घाट पर सैकडों शिवभक्तों  मानव चिता भस्म की अनूठी होली खेलते हैं, धार्मिक नगरी में स्थित मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के आस पास श्रद्धालु एक दूसरे को चिता भस्म लगाकर अनूठे तरह से होली का जश्न मनाते हैं । इसे देखने के लिए बडी संख्या में देशी विदेशी श्रद्धालु पहुंचते हैं । वे इस अनूठी होली के मनोरम दृश्य को कैमरे में कैद करते हैं।

काशी यानि की वाराणसी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है ,

इस दिन काशी के लोग अपने ईष्ट देव  बाबा भोले  नाथ के साथ श्मशान पर चिता भस्म के साथ होली खेलते हैं और इसके साथ ही काशी में होली की शुरुआत हो जाती है


रंगभरी एकादाशी के पीछे एक मान्‍यता है- माना जाता है कि इस दिन भगवान बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे थे, इसके बाद उन्‍होंने यहां अपने गणों के साथ होली खेली थी. लेकिन भगवान विश्‍वनाथ श्मशान पर बसने वाले अपने प्रिय भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे, इसीलिए रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलते हैं |



 आपने बरसाने की होली को तो देखा ही होगा, इसके अलावा आप काशी की होली का आनंद जरूरत ले और एक बार काशी की होली जरूर खेल|

 आप सभी पाठक को बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हो, धन्यवाद

Saturday, November 7, 2020

Rock Painting Ghurahupur/Buddhist temple in Ghurahupur, chanduali, Uttar Pradesh

 Buddhist temple in Ghurahupur, Chandauli, Uttar Pradesh

 इस पहाड़ी पर एक बार आज ही घूमे ,वाराणसी से 60 से 65 किलोमीटर दूरी पर स्थित है |

महात्मा बुद्ध जब  बौद्ध गया से सारनाथ वाराणसी के लिए चले थे, तो इसी स्थान  धुरहूपुर जो आज रॉक पेंटिंग के लिए मशहूर है, उसी स्थान पर महात्मा बुद्ध ने विश्राम किया था तभी से यह स्थान पूजनीय और बंदनी हो गया |


आज भी श्रद्धालु इस भूमि पर उपस्थित होकर भगवान महात्मा बुद्ध की प्रतिमा के सामने पूजन अर्चन करते हैं , प्राकृतिक दृश्य से यह स्थान अति सुंदर पहाड़ों पर है यहां घूमने में जो आनंद मिलता है वह कहीं नहीं है, 


बहुत ही खजानो व रहस्यों को समेटे  घूरहुपुर चंदौली उत्तर प्रदेश की राज देवा की पहाड़ी अब बौद्ध  पहाड़ी के रूप में अपनी पहचान बनाती जा रही है उक्त स्थल की खोज 9 वर्ष पूर्व हुई पाषाण स्थापत्य शैली से जुड़ी नक्काशीदार मूर्तियां ,शिलाए ,हथियार पहाड़ों में बहुतायत मिलती है ,खंडित प्रतिमाएं भी मौजूद है ऐतिहासिक धरोहर की राह में यह मूर्तियां यह बताती है कि यहां कभी घनघोर जंगल हुआ करता था जिसमें बौद्ध अनुयाई तपस्या लिन रहते थे ,हजारों वर्ष पूर्व यहाँ आनेवाले वाली इन्हीं अनुयायियों ने इन चित्रों को रेखांकित किया होगा पहाड़ियों के शिखर पर मानव निर्मित प्रतिमाएं देखने को मिलती है पाषाण प्रतिमा जो मिली थी उसके बारे में ग्रामीणों का कहना है कि    अदृश्य शक्ति/ ईश्वरी शक्ति का वास है इसी कारण यहां पर पूजन अर्चन दर्शनार्थियों द्वारा किया जाता है

 

विंध्य पर्वत मालाओं पर रॉक पेंटिंग इतिहास को दृष्टिगत रखते हुए अपनी पहचान बनाए हुई है कहते हैं कि इस घनघोर पर्वत में वन्यजीवों के अतिरिक्त आदिमानव भी रहा करते थे इनकी उपस्थिति उन क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों में पाए गए प्रागैतिहासिक काल की राक पेंटिंग से स्पष्ट होता है|

 इसे आमजन  भित्ति चित्र के रूप में जानते हैं, इस वन में शिलाजीत जैसे औषधियां पाई जाती हैं , भृंगराज, सफेद मूसली, सतावर, गुड़मार, हरसिंगार,कालमेघ, सर्पगंधा, बहुमूल्य दुर्लभ औषधियां विद्यमान है |

काशी वन्य जीवन प्रभाग के अंतर्गत यह वन भूमि अपनी पौराणिक ऐतिहासिक व पुरातत्विक प्रासंगिकताओं को सजाये हुए हैं |

 यहां पर जब भी आप घूमने का विचार करें तो अकेला ना जाए ग्रुप में जाएं वैसे तो आमजन के लिए कोई दिक्कत नहीं है लेकिन थोड़ा नक्सल प्रभावित होने के कारण अपनी सुरक्षा स्वयं करें|






Saturday, September 26, 2020

वाराणसी शहर से नजदीक चंदौली में प्राकृतिक नजारा झरने, चंद्रप्रभा अभ्यारण रोमांच से भर देगा

 

वाराणसी शहर से नजदीक चंदौली में प्राकृतिक नजारा, झरने, चंद्रप्रभा अभ्यारण रोमांच से भर देगा

चंद्रप्रभा अभयारण्य उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में स्थित है, यह वाराणसी से लगभग 60 किमी दूर है। 

चंद्रप्रभा डैम जो कि इसी अभ्यारण के पास है, नजदीकी जिलों के पर्यटक, स्कूल- कॉलेज के बच्चे यहां पर ज्यादातर आते हैं। शहर से कुछ ही दूरी पर शोर-शराबा से दूर शांति प्रिय माहौल और पहाड, झरना से गिरता पानी, हिरण ,बंदर अधिकतर दिख जाते हैं यह आम आदमी को प्रकृति के नजदीक का अनुभव देता है। 



यह कई घूमने की जगहों   जैसे राजदारी और देवदारी झरनों से और घने जगलों से घिरा हुआ है। इस अभयारण्य की स्थापना 1957 में एशियाई शेरों को संरक्षण देने के लिए की गई थी।

यहाँ साही, काले हिरन, चीतल, जंगली सूअर, सांभर, नील गाय, और भारतीय चिंकारा जैसे कई अन्य जानवर भी पाए जाते हैं।

यहाँ घड़ियाल और अजगर जैसे रेंगनें वाली प्रजाति के जीव भी पाए जाते हैं। यह अभयारण्य पक्षी प्रेमियों को खुश करने वाला हैं और 150 से अधिक देशी और प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। यहाँ की मुख्य वनस्पति शुष्क पर्णपाती वन है।



यह अभयारण्य 78 स्क्वायर किमी में फैला हुआ है और विंध्याचल पर्वत श्रेणी की नौगढ़ और विजयगढ़ पहाड़ियों पर स्थित है। यहाँ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक है।



 अगर आप Nature प्रेमी है तो यहाँ घुमने जरुर जाए।  मुझे विश्वास है कि वाराणसी शहर के नजदीक इतना मनमोहक प्राकृतिक नजारा नहीं मिलेगा। 

 यहां जब भी जाए , खाने- पीने वाले सामान साथ ले जाए। 


Thursday, June 4, 2020

Motivational travel with Eagle Story






 ट्रैवल  Travel के कितने Benifit  हैं   उसको पूरी तरह से बता पाना असंभव सा है क्योंकि जब हम घूमते हैं चीजों को ऑब्जर्व observe करते हैं तो हम अपने दिमाग के अनुसार वहां से वह प्राप्त करते हैं  जैसा हमारे अंतर्मन में चलता होता है लेकिन एक दूसरे शब्दों में कहें कि इस Travel को कोई मौज के तौर पर लेता है तो कोई शोध के रूप में लेता है कोई ज्ञान अर्जन , प्रकृति सौंदर्य दर्शन  के रूप में लेता है 
इस सभी का वृत्तांत यह है कि हम अपने आप को खुश रखते हैं यात्रा के दौरान जिससे तनाव एवं मानसिक  चिड़चिड़ा हट से मुक्ति मिलती है.. 
 उदाहरण के तौर पर हम या जान सकते हैं कि एक यात्रा और एक किताब में क्या समानता है और उसके पाठकों को वही मिलता है जो  पाठक चाहता है जैसे कि हम किसी एक मैगजीन को पढ़ रहे हैं और इस मैगजीन को पढ़ने वाले हर आयु वर्ग के लोग हैं तो वह अपने हिसाब से अपनी  सामग्री चुन लेते हैं जो उनको  पढ़ना है क्योंकि पूरी मैगजीन कोई नहीं पड़ता वह अपना मटेरियल खुद  चुन लेता है   उसी तरह यात्रा के दौरान यात्री क्या ग्रहण करता है वह हर यात्री  का अलग होता है.. 
ऐसे ही एक बार हम घूमते हुए एक सेमिनार में जा पहुंचे जहां पर एक स्पीकर ने एक बहुत ही मोटिवेशनल कहानी बताई जिस के कुछ अंश आज हम यहां  प्रस्तुत कर रहे हैं ध्यान से
 पढ़िए गा

 कहानी कुछ इस तरह से है
एक बार एक राजा जंगल में शिकार करने को निकला होता है रास्ते में उसको दो बाज के बच्चे दिखाई देते हैं बाज एक पक्षी होता है वहां पर नजदीक में एक किसान भी दिखाई देता है जो अपने खेतों में काम करता रहता है राजा उस किसान को बुलाता है और बाज के बच्चों के बारे में पूछता है किसान बताता है की इन बच्चों की मां किसी कारण से मर गई है इन बच्चों को भी कोई और बाज पाल नहीं रहा है यह 2 दिन से ऐसे ही यहां पड़े हैं
 यह सुनकर राजा  को दया आती है और किसान से बोलते हैं कि इसको तुम पालन पोषण कर दो और पालन-पोषण में जो भी खर्च हो राजकोष से प्राप्त कर लिया करो इस पर किसान राजी हो जाता है
ऐसे ही कई वर्ष बाद राजा उसी रास्ते से गुजर रहे होते हैं तो उसको वह बाज के बच्चे वाली घटना याद आ जाती है और फिर उत्सुकता बस उस किसान के घर पहुंच जाते हैं
 किसान राजा को देखकर बहुत खुश होता है और   बाज के बच्चे जो बड़े हो गए हैं उनके बारे में बताने लगता है
 राजा बड़े बाजो को देखकर प्रसन्न होते हैं और बोलते हैं इनको उड़ा कर दिखाओ.
किसान बाजों को उड़ाता है एक बाज़ अपने पंख फैला कर आसमान में उड़ता है तथा दूसरा बाज एक पेड़ के डाल पर जा कर बैठ जाता है राजा बोलते हैं इसको भी उड़ाओ |
 किसान बोलता है यह बहुत कम उड़ता है थोड़ा सा उड़कर इस  डाल पर आकर बैठ जाता है    यह आलसी है   , या इसे कोई बीमारी है जिसके कारण बार-बार डाल पर आकर बैठ जाता है
राजा उसके उपचार के लिए वैद्य  बुलाते हैं वह जांच कर बताते हैं कि ऐसी कोई दिक्कत तो नहीं है इसमें फिर  उड़ता क्यों नहीं है 
इस पर राजा दूसरे  वैद्य को बुलाने के लिए घोषणा करते हैं  जो भी इस बांज को उपचार कर उड़ा देगा उसको 100 अशर्फी इनाम दी जाएगी यह घोषणा सुनकर राज्य के बहुत से वैद्य किसान उसका इलाज करते हैं परंतु बाज उड़ता नहीं है उसी डाली पर जाकर बैठ जाता है, 

 सभी लोग उसके उपचार में विफल रहते हैं इन्हीं दिनों एक किसान आता है और वह बाज को उड़ा देता है बाज पंख फैलाए आसमान की ऊंचाई में उड़ान भरता है यह देखकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं

क्या आप बता सकते हैं कि किसान  ने क्या उपचार किया होगा? 
 हां मैं बताता हूं 
किसान उस पेड़ की उस डाल को ही काट देता है जहां वह   बाज जाकर  बार-बार बैठता है.
 यह कहानी अच्छी लगी आपको परंतु क्या आपको इस कहानी का मोरल समझ में आया 
नहीं तो मैं बताता हूं आप सभी वह बाज हैं जो कभी कैंटीन, पार्क, घर ,टीवी के सामने, दोस्तों से गप्पे मारना, व्हाट्सएप, फेसबुक पर आकर बैठ जाते हैं उड़ने की कोशिश नहीं करते हैं किंतु समस्या यह है कि आपकी उस डाल को  काटने कोई और नहीं आएगा उसे स्वयं ही काटना होगा |

आपने यह कहानी पढ़ा तो मैं आगे कुछ नहीं लिख सकता, क्योंकि यह वही किताब है जो हर पाठक अपनी पसंद की चीज खोज लेता है , यह कहानी आपको किस तरह से प्रेरित करेगी आपकी परिस्थिति, दिशा पर निर्भर करेगी |
धन्यवाद
 पेज को फॉलो और शेयर अवश्य करें

Saturday, May 23, 2020

25 मई 2020 से स्टार्ट होने वाले घरेलू हवाई यात्रा गाइडलाइन , सावधानियां

25 मई 2020 से स्टार्ट होने वाले  घरेलू हवाई यात्रा गाइडलाइन , सावधानियां


1. उड़ान सेवाओं को शुरू करने से पहले एयरपोर्ट ऑथिरिटी ने गाइडलाइन जारी की थी। एयरपोर्ट ऑथिरिटी ने राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन से कहा है कि यात्री अपनी प्राइवेट गाड़ी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही प्राइवेट टैक्सी का भी प्रयोग कर सकते हैं।
2.  यात्रियों को विमान डिपार्चर के 2 घंटे पहले एयरपोर्ट पहुंचने को कहा गया है। टर्मिनल के अंदर वही लोग घुस सकते हैं जिनकी फ्लाइट अगले चार घंटों में हो। एयरपोर्ट टर्मिनल में दाखिल होने से पहले सभी यात्रियों के लिए ग्‍लब्‍स और मास्‍क जैसे सुरक्षा किट पहनना अनिवार्य होगा।
3.  विमान के अंदर नहीं खा सकते खाना
उड़ान के दौरान विमान के अंदर किसी भी तरह का खाना नहीं खा सकते हैं। पानी की बोतल सीटों पर उपलब्ध कराई जाएगी। विमान के अंदर यात्रियों को खाना नहीं दिया जाएगा।
4. आरोग्य सेतु ऐप में ग्रीन लाइट जलने पर एंट्री
यात्रियों को आरोग्य सेतु ऐप पर रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है।
एंट्री गेट पर मोबाइल में ग्रीन लाइट जलने पर ही एंट्री मिलेगी। अगर ग्रीन लाइट नहीं जली, तो एंट्री नहीं मिलेगी। हालांकि 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए आरोग्य सेतु ऐप की जरूरत नहीं पड़ेगी।
5. न्यूजपेपर/मैग्जीन नहीं मिलेंगे
यात्रियों को टर्मिनल बिल्डिंग या लाउंज में न्यूजपेपर और मैग्जीन नहीं दिया जाएगा। एंट्री से पहले बैगेज को भी सैनेटाइज किया जाएगा।
6.  कर्नाटक में फ्लाइट से पहुंचने वाले उच्च जोखिम वाले राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश के यात्रियों को 7 दिनों तक सरकार की ओर से बनाए गए क्वारंटाइन होम में रहना होगा, इसके बाद सात दिन घर पर क्वारंटाइन किया जाएगा। जबकि अन्य राज्यों से लौटने वाले यात्रियों को 14 दिन घर पर ही क्वारंटाइन किया जाएगा।
7. एयरपोर्ट टर्मिनल में प्रवेश से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपने मास्‍क, शू-कवर पहना है। यह अनिवार्य है।
8. विमान में दाखिल होने से पहले आपका टेंपरेचर एक बार फिर चेक किया जाएगा। टेंपरेचर निर्धारित मानक से अधिक पाए जाने पर आपको हवाई यात्रा की इजाजत नहीं मिलेगी।
9. विमान में अपनी सीट में बैठने के बाद आपको एक बार फिर सैनिटाइज किया जाएगा। साथ ही, आपको यात्रा के दौरान क्रू के साथ कम से कम संवाद करना है।
10. कुछ एयरपोर्ट्स पर जरूरत को देखते हुए यात्रियों को PPE किट भी पहननी पड़ सकती है।
11. यात्रियों को सिर्फ चेकइन बैगेज ले जाने की होगी इजाजत, पहले चरण में केबिन बैगेज पर पूरी तरह से मनाही रहेगी।
12. एक यात्री को 20 किलो भार वाले एक ही चेकइन बैगेज ले जाने की इजाजत मिलेगी।
13. चेकइन के दौरान, आपको खुद अपना बैग उठाकर बैगेज बेल्‍ट में रखना होगा।
14. पहले चरण में 80 वर्ष से अधिक उम्र वाले यात्रियों को हवाई यात्रा की इजाजत नहीं मिलेग।
15. टिकट बुकिंग के दौरान एयरलाइंस यात्रियों को एक फार्म उपलब्‍ध कराएगी, जिसमें उन्‍हें अपनी कोविड-19 हिस्‍ट्री की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा, यदि कोई यात्री बीते एक महीने के दौरान क्‍वारंटाइन में रहा है तो इसकी जानकारी भी एयरलाइंस को देनी होगी। 

Friday, April 3, 2020

पीएम मोदी ने दीपक जलाने की लोगों से की अपील जानिए- ज्योतिष / अंक विद्या के अनुसार इसके फायदे

पीएम मोदी ने दीपक जलाने की लोगों से की अपील
जानिए- ज्योतिष / अंक विद्या  के अनुसार इसके फायदे

प्रधानमंत्री ने शुक्रवार सुबह नौ बजे प्रसारित अपने 12 मिनट लंबे वीडियो संदेश में पांच अप्रैल को रात्रि नौ बजे नौ मिनट के लिए घर लाइट्स बंद करके एक दीया, मोमबत्ती या मोबाइल फ्लैश लाइट जलाने की अपील की है। 
कोरोना संकट के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से एक बार फिर अपील की है कि वह इस संकट की घड़ी में एकजुटता दिखाएं।
इसके लिए इस बार प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल रविवार को रात 9 बजे सभी लोगों से घर की लाइट बुझाकर दीप, मोमबत्ती जलाने का आग्रह किया है।
इससे पहले मोदी ने 22 मार्च को कोरोना संकट में एक जुटता के लिए शाम 5 बजे ताली-थाली बजाने का आह्वान किया था। क्या मोदी की यह पहल महज एकजुटता के लिए है
दुनिया में संक्रमण से हो रही मौतों, अमेरिका जैसे देश की खस्ता हालत और टीवी पर कोविड-19 जुड़ी खबरों के कारण अधिकांश लोग मानसिक दबाव में हैं।
प्रधानमंत्री का यह कदम इन सभी लोगों का मूड चेंज कराएगा। लोगों में एक नई तरह की ऊर्जा का संचार करेगा।
तमसो मा ज्योर्तिगमय का दुनिया मानेगी लोहा
विदेश मंत्रालय के अफसर प्रधानमंत्री की अपील को काफी अच्छा मान रहे हैं। अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी के अनुसार दुनिया के तमाम देशों में भारत की कोविड-19 से लड़ने के लिए अपनाई गई नीति की सराहना हो रही है। सूत्र का कहना है कि 22 मार्च को जनता के शंख बजाने, ताली बजाने की घरेलू स्तर पर चाहे जो आलोचना हो, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसे देश के जनता की प्रधानमंत्री मोदी के साथ एकजुटता माना गया।

जानें दिए जलाने के फायदे- 

1.- हिंदू धर्म में तो युगों से परंपरा चली आ रही है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की शाम में एक दीप घर की छत पर जलाकर लोग रख देते हैं जिनमें कौड़ी भी लोग डाल देते हैं। ऐसी मान्यता चली आ रही है कि इससे यमराज प्रसन्न होते हैं अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। संयोग की बात यह है कि 5 अप्रैल रविवार को संध्या काल में त्रयोदशी तिथि लग रही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रयोदशी तिथि की देवी जया हैं जो देवी दुर्गा के साथ चलने वाली योगिनी हैं। यही देवी युद्ध के मैदान में आगे बढ़कर योद्धाओं को विजयी बनाती हैं। इसलिए आम दिनों में भी त्रयोदशी तिथि को एक दीपक घर के बाहर जलाना बड़ा ही शुभ फलदायी माना गया है। यहां आपको बता दें कि दीप कभी भी सम संख्या में नहीं जलाना चाहिए, यानी 1 जलाएं, 3 जलाएं या 5 पांच।


2. घर से हर तरह की बीमारियां दूर करने के काम आता है दीया। घी का दिया जलाना पूरे घर के लिए लाभदायक होता है। घी में त्वचा से जुड़े सभी रोगों को दूर करने के गुण होते हैं।

3.- जब दीये में मौजूद घी, आग से मिलता है तो ये वातावरण को पवित्र कर देता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि घी का दीया जलाने से घर में मौजूद सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं।
अगर आप इसके साथ एक लॉन्ग जलाते हैं, तो ये सेहत के लिए काफी अच्छी होता है।

4. वहीं, घी के अलावा अगर आप दीये में सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं, तो ये एयर प्यूरीफायर का काम करता है। इसका धुंआ घर के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है।

5. घी या सरसों के तेल का दिया अस्थमा के मरीज़ों के लिए भी लाभदायक होता है।

6. घी और सरसों के तेल की सुगंध घर की हवा में मौजूद हानिकारक कणों को बाहर निकालती है।

- मशहूर मनोविश्लेषक डॉक्टर समीर पारेख कहते हैं कि पीएम के संदेश से देशवासियों में अच्छे काम के लिए एक जुटता पैदा होगी, जिससे मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।

शुभ फलदायी बता रहे ज्योतिषशास्त्री...


काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय कहते हैं कि पांच अप्रैल 2020 को रात्रिकाल अर्थात रात्रि नौ बजे पूर्वा फाल्गुनि नक्षत्र है, जिससे सिंह राशि बनती है। जिसका अधिपति सूर्य है। सूर्य परमेश्वर की ज्योति का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोक में अंधकार से प्रकाश की स्थापना करते हैं।

अंक विद्या का भी अदभुत संयोग...


अंक विद्या के द्वारा 9 संख्या पांच अप्रैल 2020 को आ रही है। रात्रि नौ बजे नौ मिनट का समय

निर्धारण कार्य की पूर्णता और शुभता का प्रतीक है। क्योंकि 9 संख्या को

पूर्ण संख्या माना जाता है। संयोग भी कह सकते हैं कि 3 अप्रैल को सुबह 9 बजे

प्रधानमंत्री ने देश का आह्वान किया। प्रधानमंत्री का संबोधन भी हुआ मात्र 9 मिनट। संबोधन की

तारीख 3. 4. 20 (3+4+2+0)=9 । 5 अप्रैल का दिन यानी (5 + 4) का योग हुआ 9। समय रात 9

बजकर 9 मिनट। वस्तुत: 9 का अंक अविभाज्य होता है। 9 में कितनी भी बार 9 जोड़ें फलांकों का योग 9 ही होगा।


आत्मबल का प्रतीक है दीया...:

Saturday, March 28, 2020

Lockdown :लॉक डाउन के बाद मार्मिक सफर.. न घर के ..न घाट के.. सत्ता और इस व्यवस्था के मारे हुए लोग हैं



लॉक डाउन के बाद मार्मिक सफर..

 घर के ..न घाट के ..,सत्ता और इस व्यवस्था के मारे हुए लोग हैं

यह भी सुनिए, गाँव अपने इन बिछुड़ों का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं। वहाँ भी लोग इन आने वालों से डरे हुए हैं। बहुत जगह विरोध हो रहा है, बहुत जगह लोग रात के अंधेरों में अपने घरों में पहुंचे हैं।

सड़कों पर ग़रीबों के जो हुज़ूम जिनमें युवा स्त्री-पुरुष, उनके मासूम बच्चे, बूढ़े परिजन शामिल हैं, अपने पुराने ठिकानों की तरफ़ पैदल ही बढ़े जा रहे हैं, वे कोरोना के नहीं, इस सत्ता और इस व्यवस्था के मारे हुए लोग हैं।
क्या मध्यवर्ग भी कभी ऐसी यात्रा करता है कि 1000 किलोमीटर पैदल बिना खाए पिए चलता रहे? वे किसी अनजाने डर से भाग रहे हैं

Lock down  होते ही
देश की इस विशाल श्रमशील आबादी के पांवों तले से ज़मीन खिसक जाती है। कोई बताएगा, फैक्ट्रियों की काल-कोठरियों, किराये के मुर्गी खानों जैसे दड़बों में पड़े रहने वाले इन लोगों के लिए क्या इंतज़ाम थे? फैक्ट्रियों से लतिया दिए गए इन लोगों से पूछिए, शंख-थाली बजाने वालों ने उनकी तनख्वाएं तक मार लीं। बेकाम, बेछत हो गए लोग पुलिस की मार खाने का जोख़िम उठाकर भी अपने गाँवों की तरफ़ पैदल ही न निकल पड़ते तो क्या करते?



नेतृत्व की परीक्षा संकटकाल में ही होती है. इस संकट काल में कोई नेता जनता का मजाक उड़ा रहा है, कोई रामायण देखते हुए अपनी फोटो जारी कर रहा है, कोई घंटी बजाते हुए वीडियो बनवा कर जारी कर रहा है, कोई आरती और श्लोक शेयर कर रहा है. यही इनका महान नेतृत्व है.


आज का यह सफर बहुत ही मार्मिक होते हुए भी,  भविष्य के लिए बहुत कुछ सिखा जाएगा , यह सभी अपने मंजिल पर पहुंचे और रोग मुक्त रहें ! और इनके गांव वालों से एक अनुरोध है कि इनका इलाज या चेकअप कर गांव में शरण दे, आखिर यह भी उसी गांव के  भाई बंधु है ! जितना हक आपका है गांव पर, उतना ही हक उनका भी है ! बस यह महामारी के मारे हुए हैं ,वक्त के सताए हुए हैं अगर आप उनका साथ नहीं देंगे तो फिर कौन देगा! 

काशी में शमशान की राख से होली का त्यौहार की शुरुआत ( Holi Festival in kashi)

  Holi Festival in kashi काशी में शमशान की राख से होली  के त्यौहार की शुरुआत उत्तर प्रदेश के वाराणसी में श्मशान घाट पर सैकडों शिवभक्तों  मान...